मौसम से सुख- दुख (कविता) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु04-Mar-2024
दिनांक- 04,0 3, 2024 दिवस- सोमवार स्वैच्छिक विषय- मौसम से सुख- दुख प्रतियोगिता हेतु
गम और खुशियों को समझो, जीवन का दो किनारा। एक खड़ा इस पार है तकता, एक तकता उस पारा।
ज्यूंँ ऋतुएंँ हैं आती -जाती, जीने की एक कला सिखातीं। ऐसे ही सुख-दुख को समझो, चिंता में तुम ना किसी उलझो।
सुख-दुख हमें हंँसाते रुलाते, स्थिति से लड़ना सिखलाते। सुख-दुख को समभाव से जीओ, अमृत विष दोनों ही पियो।
भावुक होना बात है अच्छी, बात बताऊंँ तुमको सच्ची। पर ना इसे कमज़ोरी बनाना, वरना खा जाओगे गच्ची।
उदासी भी जीवन का हिस्सा, समय - बेसमय यदि आ जाए। इससे ख़ुद तुम बाहर आना , मदद किसी की तुम्हें न चाहे।
जीवन का यदि कोई भी पल, सुख की अनुभूति करा जाता है। ना उस पर कभी दंभ करो तुम, जनम- जनम का ना नाता है।
दुख के बाद है सुख जब आता, मिनटों में सब दर्द ले जाता। सुख के बाद है दुख जब आता , मानव इससे क्यों घबराता ?
जीवन का है यह दस्तूर, उतार-चढ़ाव से रहें न दूर। हिम्मत को यदि साथी बना लो, क्षण में ये हो जाएंँ काफूर।
प्रभु पर तुम बस करो भरोसा, वो सदा साथ तुम्हारा देंगे। दुख में कभी तुम दुखी न होना, सुख के क्षण भी वो ला देंगे।
साथ दिया इतना ईश्वर ने, हममें वो विश्वास भरा है। सच्चिदानंद जब साथ हमारे, कोई डर, बाधा ना अड़ा है।
ऋतु,महीने से सुख-दुख हैं , उस सा ही ये आते -जाते। सबका ही अंदाज निराला, सब के सब कुछ देकर जाते।
साधना शाही, वाराणसी
Varsha_Upadhyay
14-Mar-2024 07:20 PM
Nice
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Gunjan Kamal
05-Mar-2024 07:13 PM
👌👏
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Mohammed urooj khan
05-Mar-2024 03:45 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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